कोई ख़ुश्बू मिट्टी से आने लगी है ज़मीं पर वो बूँदें गिराने लगी है पलट आई है फिर से सावन की बारिश कड़ी धूप घर से हटाने लगी है मोहब्बत मोहब्बत अक़ीदत अक़ीदत ये नग़्मे सुहाने सुनाने लगी है कहाँ से निकल आए हैं ये पतंगे ये किस किस को बारिश जगाने लगी है मोहल्ले में ख़ामोश रहती थी लड़की जहाँ सारा सर पर उठाने लगी है धनक से लपक कर वो मिलने लगी है गुमाँ से भी अब पार जाने लगी है तमाज़त ग़मों की जलाती बहुत थी मिरी आग बारिश बुझाने लगी है ये ग़फ़लत के पर्दे भी दिल से हटा दे दुआ लब पे मेरे ये आने लगी है 'महक' आँख से टपका पानी बहुत है नदामत से आँसू बहाने लगी है