मुद्दत में इधर फिर वो गुल-बार नज़र आए सहरा में बहारों के आसार नज़र आए क्या राज़-ए-मशिय्यत था हम आलम-ए-हस्ती में मजबूर रहे लेकिन मुख़्तार नज़र आए मस्ती-भरी आँखों से जब उस ने हमें देखा मसरूर नज़र आए सरशार नज़र आए देखे हैं मोहब्बत के हम ने ये करिश्मे भी इक बार छुपे गर वो सौ बार नज़र आए फिर मस्त घटा छाई फिर पड़ने लगीं बूँदें फिर जाम-ब-कफ़ हर-सू मय-ख़्वार नज़र आए मदहोश फ़ज़ाओं में फिर क़ौस-ए-क़ुज़ह दमकी फिर क़ामत-ए-रंगीं के अनवार नज़र आए उन मस्त निगाहों ने ख़ुद अपना भरम खोला इंकार के पर्दे में इक़रार नज़र आए हम बादा-परस्तों ने छेड़ी जो हदीस-ए-मय खुलते हुए दुनिया के असरार नज़र आए हर रूह में देखी है ऐ 'नक़्श' ख़लिश ग़म की हर फूल के पहलू में कुछ ख़ार नज़र आए