मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ किस के लब पर देखना हर्फ़-ए-दुआ रौशन हुआ रूह को आलाइश-ए-ग़म से कभी ख़ाली न रख यानी बे-ज़ंगार किस का आइना रौशन हुआ ये तमाशा दीदनी ठहरा मगर देखेगा कौन हो गए हम राख तो दस्त-ए-दुआ रौशन हुआ रात जंगल का सफ़र सब हम-सफ़र बिछड़े हुए दे न हम को ये बशारत रास्ता रौशन हुआ ख़्वाहिशों ख़्वाबों का पैकर ही सही मेरा वजूद इक सितारे की हक़ीक़त क्या बुझा रौशन हुआ बू-ए-गुल पत्तों में छुपती फिर रही थी देर से ना-गहाँ शाख़ों में इक दस्त-ए-सबा रौशन हुआ इस क़दर मज़बूत मौसम पर रही किस की गिरफ़्त मैं कि मुझ से सीना-ए-आब-ओ-हवा रौशन हुआ इक ज़रा उस से बढ़ी क़ुर्बत तो आँखें खुल गईं उस के मेरे बीच था जो फ़ासला रौशन हुआ वक़्त ने किस आग में इतना जलाया है मुझे जिस क़दर रौशन था मैं उस से सिवा रौशन हुआ मुझ को मेरी आगही आँखों से ओझल कर गई उस ने जो कुछ लौह-ए-जाँ पर लिख दिया रौशन हुआ ऐ 'फ़ज़ा' इतनी कुशादा कब थी मअ'नी की जिहत मेरे लफ़्ज़ों से उफ़ुक़ इक दूसरा रौशन हुआ