मुफ़्त राज़-ए-ज़िंदगी रुस्वा किया ऐ मिरी वारफ़्तगी ये क्या किया ज़िंदगी क्या थी तिलिस्म-ए-आब-ओ-गिल मैं ख़ुदा जाने कि क्या समझा किया वुसअ'तें ही वुसअ'तें आईं नज़र जिस तरफ़ उट्ठी नज़र देखा किया एक मंज़र भी नहीं अब दिल-पज़ीर तू ने ऐ अफ़्सुर्दगी ये क्या किया मंज़र-ए-हस्ती की इबरत-ख़ेज़ीयाँ जिस ने देखा उम्र भर रोया किया