मुँह फूल से रंगीं था व सारी थी उस हरी By Ghazal << एक से सिलसिले हैं सब हिज्... जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मि... >> मुँह फूल से रंगीं था व सारी थी उस हरी खतरानी एक देखी मैं पनघट पे ज्यूँ परी चीरी हैं उस की उर्बसी रम्भा ओ राधिका प्रभू ने फिर बनाई नहीं वैसी दूसरी मैं ने कहा कि घर चलेगी मेरे साथ आज कहने लगी कि हम सूँ न कर बात तू बुरी Share on: