मुज़्तरिब आप के बिना है जी ये मोहब्बत भी क्या बला है जी जी रहा हूँ मैं कितना घुट घुट कर ये मिरा जी ही जानता है जी मेरे सीने में जो धड़कता है मेरा दिल है कि आप का है जी आप इस को बुरा समझते हैं अपना अपना मुशाहिदा है जी इतने मासूम आप मत बनिए आप लोगों को सब पता है जी क्या बताऊँ कि कितनी शिद्दत से तुम से मिलने को चाहता है जी चंद यादें हैं चंद सपने हैं अपने हिस्से में और क्या है जी अहल-ए-फ़ुर्क़त की ज़िंदगी 'राग़िब' ज़िंदगी है कि इक सज़ा है जी