मुझ दरवेश को मतलब क्या है मंसब से जागीरों से जिस ने शब-भर ख़्वाब बुने हों वो उलझे ता'बीरों से घर-घर ख़ुशबू बाँट रहा हूँ एक दुकाँ है फूलों की कुछ रंगों से रब्त है मेरा कुछ रग़बत तस्वीरों से अक्सर औंधे मुँह गिरते हैं हवा की रौ में बहते लोग अक्सर खेल बिगड़ जाते हैं बे-मौक़ा’ तदबीरों से कैसा रोग लगा है दिल को जाने क्या बीमारी है चारागरों से बात बनी है पीरों से न फ़क़ीरों से बस ये सोच के ख़ामोशी है बूढ़े बाप के होंटों पर बच्चे बाग़ी हो जाते हैं अक्सर अब तक़रीरों से हर्फ़-हर्फ़ से रंग उड़ें और लफ़्ज़-लफ़्ज़ में ख़ुशबू हो ऐसा हो कोई लिखने वाला फूल खिलें तहरीरों से किस ने नींद उड़ा रक्खी है 'आदिल' पहरे-दारों की कौन ये पागल खेल रहा है ज़िंदाँ में ज़ंजीरों से