जब अपने ख़्वाब का चेहरा बनेगा हमें मा'लूम है कैसा बनेगा बला की तीरगी है दिल खंडर में ज़रा सी रौशनी से क्या बनेगा हम इक रस्ते के दो तन्हा मुसाफ़िर हमारे बीच क्या रिश्ता बनेगा मैं जिस तरतीब से बिखरा पड़ा हूँ अगर यकजा हुआ तो क्या बनेगा जहाँ सहरा से सहरा बन रहे हों वहाँ तिश्ना-लबी का क्या बनेगा अगर ये शोर हद से बढ़ गया तो हमारी ख़ामोशी का क्या बनेगा