मुझ को अब साक़ी-ए-गुलफ़ाम से कुछ काम नहीं मय से कुछ काम नहीं जाम से कुछ काम नहीं दिल में ख़ुश आई हैं सहरा की बबूलें पुर-ख़ार अब किसी सर्व-ए-गुल-अंदाम से कुछ काम नहीं अपने आराम से हूँ दश्त-ए-जुनूँ में तन्हा किसी महबूब-ए-दिल-आराम से कुछ काम नहीं ख़ाना-बर्बाद हूँ सहरा में बगूलों की तरह सक़्फ़-ओ-दीवार-ओ-दर-ओ-बाम से कुछ काम नहीं ताइर-ए-रूह-ए-रमीदा की तरह छूटा हूँ अब तो सय्याद तिरे दाम से कुछ काम नहीं तब्-ए-रौशन को नहीं ख़ौफ़ सियह-रोज़ी का सुब्ह-ए-महशर हूँ मुझे शाम से कुछ काम नहीं इतनी मुद्दत से हूँ ग़ुर्बत में वतन भूल गया मुझ को अब नामा-ओ-पैग़ाम से कुछ काम नहीं है फ़िराक़-ए-बुत-ए-ख़ुद-काम में 'नासिख़' का कलाम हूँ मैं नाकाम मुझे काम से कुछ काम नहीं