लगा दे सोज़-ए-मोहब्बत फिर आग सीने में मज़ा फिर आने लगे दिल-जलों को जीने में ब-ख़ैर गुज़रें ये दो दिन बहार के या-रब कि रोक टोक बहुत हो रही है पीने में खटक रही है कोई शय निकाल दे कोई तड़प रहा है दिल-ए-बे-क़रार सीने में चमक रही है ये बिजली गिरेगी तौबा पर झलक रही है मय-ए-लाला-फ़ाम मीने में ये ख़ास वक़्तों के कुछ नाला-हा-ए-मौज़ूँ हैं हमारे शेर 'मुबारक' नहीं सफ़ीने में