मुझ को और कहीं जाना था बस यूँही रस्ता भूल गया था देख के तेरे देस की रचना मैं ने सफ़र मौक़ूफ़ किया था कैसी अँधेरी शाम थी उस दिन बादल भी घर कर छाया था रात की तूफ़ानी बारिश में तू मुझ से मिलने आया था माथे पर बूंदों के मोती आँखों में काजल हँसता था चाँदी का इक फूल गले में हाथ में बादल का टुकड़ा था भीगे कपड़े की लहरों में कुंदन सोना दमक रहा था सब्ज़ पहाड़ी के दामन में उस दिन कितना हंगामा था बारिश की तिरछी गलियों में कोई चराग़ लिए फिरता था भीगी भीगी ख़ामोशी में मैं तिरे घर तक साथ गया था एक तवील सफ़र का झोंका मुझ को दूर लिए जाता था