मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर By Ghazal << याद उसे इंतिहाई करते हैं जी में है याद रुख़-ओ-ज़ुल... >> मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर रख ली मिरे ख़ुदा ने मिरी बेकसी की शर्म वो हल्क़ा-हा-ए-ज़ुल्फ़ कमीं में हैं या ख़ुदा रख लीजो मेरे दावा-ए-वारस्तगी की शर्म Share on: