मुझ को दीवाना समझते हैं वो शैदाई भी मैं तमाशा भी हूँ महफ़िल में तमाशाई भी बढ़ गई हम से नक़ाहत में हमारी तस्वीर इस में बाक़ी न रही क़ुव्वत-ए-गोयाई भी ढल न जाए कहीं शाने से हवा में आँचल अब वो शरमाते हैं लेते हुए अंगड़ाई भी मिट गया दाग़-ए-दिल-ज़ार भी रफ़्ता रफ़्ता बुझ गया आज चराग़-ए-शब-ए-तन्हाई भी जिस क़दर पास थी पूँजी उसे हम खो बैठे इश्क़ में 'नूह' गई दौलत-ए-आबाई भी