वही हालात हैं फ़क़ीरों के दिन फिरे हैं फ़क़त वज़ीरों के अपना हल्क़ा है हल्क़ा-ए-ज़ंजीर और हल्क़े हैं सब अमीरों के हर बिलावल है देस का मक़रूज़ पाँव नंगे हैं बेनज़ीरों के वही अहल-ए-वफ़ा की सूरत-ए-हाल वारे न्यारे हैं बे-ज़मीरों के साज़िशें हैं वही ख़िलाफ़-ए-अवाम मशवरे हैं वही मुशीरों के बेड़ियाँ सामराज की हैं वही वही दिन-रात हैं असीरों के