मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच हाए लालच है तो इक माह-जबीं का लालच इश्क़-बाज़ी पे सुना मुझ को मलामत न करो हैफ़ है जिस को न हो तुम से हसीं का लालच हालत-ए-क़ल्ब सर-ए-बज़्म बताऊँ क्यूँकर पर्दा-ए-दिल में है इक पर्दा-नशीं का लालच जब यहीं तैश में गुज़रे तो वहाँ क्या उम्मीद न रहा इस लिए हम को तो कहीं का लालच बोरिया तख़्त-ए-सुलैमाँ से कहीं बेहतर है हम ग़रीबों को नहीं ताज-ओ-नगीं का लालच न मैं दुनिया का तलबगार न उक़्बा की हवस आसमानों की तमन्ना न ज़मीं का लालच दिल भी दो जान भी दो ज़र भी दो उस को 'परवीं' बढ़ गया सब से मिरे माह-जबीं का लालच