वो तन्हा था तो फिर तन्हाई का दम-साज़ होना था उन आँखों के लिए मुझ को सितारा-साज़ होना था सभी ख़ामोश थे आवाज़ पर उस की सो ऐसे में मुझे चुप तो नहीं रहना था हम-आवाज़ होना था जो दिल में था वो इक वीरान गुम्बद ही में कह देता ये मेरा अहद था मुझ को असर-अंदाज़ होना था मिरे लब पर ज़माने की शिकायत किस लिए आई अगर ये शोर था तो उस को बे-आवाज़ होना था न जाने मुझ से कितने लोग थे जो सोचते ये थे कि इन से इक नई तारीख़ का आग़ाज़ होना था जहाँ ज़ख़्मी तमन्नाओं की सरहद ख़त्म होती थी वहाँ से इक नई उम्मीद का आग़ाज़ होना था ये कार-ए-इश्क़ था 'अश्फ़ाक़' मुझ से हो नहीं पाया मुझे भी शाइ'री में साहिब-ए-एजाज़ होना था