मुझ को तलब तो नई दुनिया की है राहबरी नक़्श-ए-कफ़-ए-पा की है बादिया-पैमाई-ए-वहशत से तंग बे-उफ़क़ी वुसअत-ए-सहरा की है है वही मौजूद जो है दीदनी राय यही दीदा-ए-बीना की है घूर रही है जिसे प्यासी नज़र शक्ल वो मय की नहीं मीना की है दिल-कशी-ए-पेच-ओ-ख़म-ए-पैरहन देन ख़म-ओ-पेच-ए-सरापा की है ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तलव्वुन में भी ख़ूबी-ए-तमकीं रुख़-ए-ज़ेबा की है मुझ से वो है मुझ से ज़ियादा क़रीब ख़्वाहिश-ए-क़ुर्ब उस से ज़ियादा की है यूँ तो किनायों का भी आदी है दार दिल की हवस इस के अलावा की है नक़्श में नुक़्तों के सिवा कुछ नहीं शक्ल-गरी शौक़-ए-तमाशा की है सब्त 'मुहिब' उस लब-ए-जाँ-बख़्श पर तिश्ना-लबी मेरी तमन्ना की है