मुझ पर जुनून-ए-शौक़ का क्यूँ-कर असर ग़लत गर ये ग़लत तो राह ग़लत राहबर ग़लत नज़र आ गए वो आप ही देखा जो आइना समझे थे इश्क़ ही को मरीज़-ए-नज़र ग़लत वारफ़्तगी-ए-शौक़ सँभलने भी दे मुझे बे-ताबियों का वो न कहीं लें असर ग़लत मत पूछ वो निगाहों से क्या कुछ पिला गए अब बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में बाक़ी कसर ग़लत 'फ़ाइक़' गुदाज़-ए-दिल है मोहब्बत में अस्ल शय ये सैल-ए-अश्क-ए-ख़ाम ये दामान-ए-तर ग़लत