मुझ पे दहलीज़ से फेंका है गुल-ए-तर किस ने मेरे अल्लाह जगाया है मुक़द्दर किस ने मेरी जानिब था रफ़ीक़ों की रिफ़ाक़त का हिसार फिर मिरी पुश्त पे घोंपा है ये ख़ंजर किस ने हुस्न-ए-अख़्लाक़ के पैकर थे हमारे बच्चे उन के हाथों में थमाया है ये पत्थर किस ने कितना पुर-कैफ़ है गिर्दाब का मंज़र देखो दिल के तालाब में फेंका है ये कंकर किस ने गुल-बदन ज़ोहरा-जबीं तू ही बता दे मुझ को इस मोहब्बत से तराशा है ये पैकर किस ने ग़ाएबाना हुई होगी कोई नुसरत 'सारिम' वर्ना तुम को यूँ बनाया है सुख़न-वर किस ने