मेरी पलकों पे ख़्वाब रहने दे कुछ न कुछ इज़्तिराब रहने दे हक़-बयानी तो मेरा शेवा है मुझ को ज़ेर-ए-इताब रहने दे तुझ को फ़ुर्सत मिले तो पढ़ लेना मुझ को मिस्ल-ए-किताब रहने दे तेरी आँखें तो ख़ुद नशीली हैं ज़िक्र-ए-जाम-ओ-शराब रहने दे तिश्नगी जब मिरा मुक़द्दर है मेरे हक़ में सराब रहने दे कोई आया है सज के गुलशन में आज ज़िक्र-ए-गुलाब रहने दे लिख दे वाइज़ गुनाह सब मुझ पर नाम अपने सवाब रहने दे ज़िंदगी तो हबाब है 'सारिम' अब मुझे तू हबाब रहने दे