मुझ पे इल्ज़ाम धर गया देखो आँख अश्कों से भर गया देखो कोई रौशन ज़मीर था शायद और अँधेरों में मर गया देखो जिस ने रक्खा था सर हथेली पर वो भी दुनिया से डर गया देखो दिल को कितना सँभाल रक्खा था उस को ढूँडो किधर गया देखो किस क़दर अजनबी सा लगता है बाद मुद्दत के घर गया देखो मुझ को 'दाएम' यक़ीन से बिछड़े एक अर्सा गुज़र गया देखो