मुझ पे इल्ज़ाम लगाते हो लगाए जाओ ख़ून-ए-दिल अपना जलाते हो जलाए जाओ हिज्र की शब कोई आसान नहीं होती है अश्क तुम अपने बहाते हो बहाए जाओ इश्क़-ए-कामिल की ज़मानत तुम्हें मैं देता हूँ ये मिरा शेर जो तुम गाते हो गाए जाओ क़ैस के दश्त में लाते हो सवारी अपनी या'नी यूँ धूम मचाते हो मचाए जाओ झील के पानी में दो शो'ला-नुमा होंट ग़ज़ब हाए क्या आग लगाते हो लगाए जाओ मेरे अशआ'र जो समझे न वो मुझ को समझे यार तुम ख़ुद को थकाते हो थकाए जाओ हम ने सोज़िश पे मोहब्बत की बिना रखी है तुम अगर ताज बनाते हो बनाए जाओ 'दानिश' असरी का तो मस्लक है फ़क़त दश्त की ख़ाक तुम अगर घर से निभाते हो निभाए जाओ