मुझ पे तो गिरे ख़ंजर तुम लहू लहू क्यों हो ज़ख़्मी मेरे बाल-ओ-पर तुम लहू लहू क्यूँ हो तुम को तो मिले तम्ग़े ज़ोहद-ओ-पारसाई के संग तो पड़े मुझ पर तुम लहू लहू क्यों हो दिल के चाक मैं अपने एक भी न सिल पाई हैं तुम्हारे चारागर तुम लहू लहू क्यूँ हो तुम को तो मिला रुत्बा सर के ताज होने का ज़ेर-ए-पा है मेरा सर तुम लहू लहू क्यों हो यूँ तो मुतमइन हूँ मैं बे-वफ़ा तुम्हें फिर भी सोचती हूँ ये अक्सर तुम लहू लहू लहू क्यूँ हो रंग गुल सबा 'निकहत' सब तुम्हारे हिस्से में ख़ार हैं मिरा ज़ेवर तुम लहू लहू क्यों हो