मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है हादसा कोई भी इस शहर में हो सकता है सतह-ए-दरिया का ये सफ़्फ़ाक सुकूँ है धोका ये तिरी नाव किसी वक़्त डुबो सकता है ख़ुद कुआँ चल के करे तिश्ना-दहानों को ग़रीक़ ऐसा मुमकिन है मिरी जान ये हो सकता है बे-तरह गूँजता है रूह के सन्नाटे में ऐसे सहरा में मुसाफ़िर कहाँ सो सकता है क़त्ल से हाथ उठाता नहीं क़ातिल न सही ख़ून से लुथड़े हुए हाथ तो धो सकता है झूम कर उठता नहीं खुल के बरसना कैसा कैसा बादल है कि हँसता है न रो सकता है जुज़ मिरे रिश्ता-ए-अनफ़ास-ए-गिरह-गीर में कौन गुहर-ए-अश्क-ए-शरर-बार पिरो सकता है