मुझ साथ सैर-ए-बाग़ कूँ ऐ नौ-बहार चल बुलबुल है इंतिज़ार में ऐ गुल-इज़ार चल करने कूँ क़त्ल आशिक़-ए-जाँ-बाज़ के सनम ले तेग़-ए-नाज़ हाथ कमर रख कटार चल करने नज़ारा बाग़ का निकला है गुल-बदन बरजा है हर चमन सूँ गर आवे बहार चल उस गुल-बदन सूँ ज़ौक़ हम-आग़ोश है अगर हो चाक सीना गुल के नमन बन के हार चल उस शम्अ-रू के वस्ल का गर तुझ कूँ शौक़ है महफ़िल में आशिक़ाँ की हो परवाना-वार चल आख़िर असीर-ए-उम्र का है इस जहाँ सूँ कूच इस वास्ते है दम की जरस में पुकार चल गर अज़्म है बुज़ुर्गी इस आलम में हुए हुसूल आमाल-नामा जग में अपस का सँवार चल गर यार के है वस्ल की नेमत की इश्तिहा हर शय सूँ रह ऊ पास वहाँ लग नहार चल अव्वल ख़ुदी के घर कूँ ऐ 'दाऊद' तोड़ सट मय-ख़ाना-ए-विसाल में तब सिध-बिसार चल