मुझ से आँखें लड़ा रहा है कोई मेरे दिल में समा रहा है कोई है तिरी तरह रोज़ राहों में मुझ से तुझ को छुड़ा रहा है कोई फिर हुए हैं क़दम ये मन मन के पास अपने बुला रहा है कोई निकलूँ हर राह से उसी की तरफ़ रास्ते वो बता रहा है कोई क्या निकल जाऊँ अहद-ए-माज़ी से याद बचपन दिला रहा है कोई फिर से उल्फ़त नहीं है आसाँ कुछ भूले नग़्मे सुना रहा है कोई धड़कनें तेज़ होती जाती हैं मेरे नज़दीक आ रहा है कोई वो जो कहता है भूल जाऊँ ख़लिश वक़्त उस पर कड़ा रहा है कोई