बे-नाम दयारों से हम लोग भी हो आए कुछ दर्द थे चुन लाए कुछ अश्क थे रो आए कुछ पास न था अपने बस आस लिए घूमे इक उम्र की पूँजी थी सो उस को भी खो आए तौहीन-ए-अना भी की तहसीन-ए-रिया भी की ये बोझ भी ढोना था ये बोझ भी ढो आए इक कार-ए-नुमू बरसों करते रहे बिन सोचे हम बीज मोहब्बत के सहराओं में बो आए पहचान का हर मंज़र अंजान हुआ आख़िर लगता है कई सदियाँ इक ग़ार में सो आए