मुझ से ही खोया है यक़ीं शायद देखूँ होगा यहीं कहीं शायद थक चुकी हैं उदासियाँ मुझ से दस्तकें और दें कहीं शायद क्या कभी बेवफ़ा वो निकलेगा दिल ने झट से कहा नहीं शायद वक़्त कमज़ोर ही को चुनता है और कमज़ोर थे हमीं शायद इतने तारे कहाँ से उगते हैं आसमाँ पर भी है ज़मीं शायद