मुझ से इतना न इंहिराफ़ करो जो ख़ता हो गई मुआ'फ़ करो मैं ख़ताओं को मान लेता हूँ तुम मोहब्बत का ए'तिराफ़ करो ये कुदूरत नहीं तुम्हें ज़ेबा दिल को मेरी तरफ़ से साफ़ करो फ़ैसला तुम पे अब तो छोड़ दिया मेरे हक़ में करो ख़िलाफ़ करो मेरी हर बात में है मजबूरी मेरी हर बात को मुआ'फ़ करो साफ़ है मेरे दिल का आईना मुझ से तुम बात साफ़ साफ़ करो कू-ए-जानाँ मक़ाम-ए-फ़ैज़ है 'अर्श' तुम इसी का'बे का तवाफ़ करो