मोहब्बत वो मरज़ है जिस का चारा हो नहीं सकता जिगर का हो कि दिल का ज़ख़्म अच्छा हो नहीं सकता वो नाला कोई नाला है जो कम हो मौज-ए-तूफ़ाँ से वो आँसू कोई आँसू है जो दरिया हो नहीं सकता तमाशा है कि हम उस को मसीहा दम समझते हैं हमारे दर्द का जिस से मुदावा हो नहीं सकता मुझे फ़रियाद पर माइल न कर ऐ जोश-ए-नाकामी ज़माने-भर में दिल का राज़ रुस्वा हो नहीं सकता अजब क्या है जो ख़ामोशी ही शरह-ए-आरज़ू कर दे मिरे लब से तो इज़्हार-ए-तमन्ना हो नहीं सकता मुबारक हो तुझी को ये ख़यालिस्तान ऐ वाइ'ज़ तिरी दुनिया में रिंदों का गुज़ारा हो नहीं सकता तमाशा हो गया है तेरे जल्वों का तमाशाई कोई इस शान से महव-ए-तमाशा हो नहीं सकता बदल सकते हो तुम बिगड़ी हुई क़िस्मत ज़माने की तुम्हारी इक निगाह-ए-नाज़ से क्या हो नहीं सकता