मुझ से पूछे हैं वो कि क्या है दिल क्या कहूँ ख़ाना-ए-ख़ुदा है दिल क्या कहूँ क्या बुरी बला है दिल उस की ज़ुल्फ़ों से जा गुथा है दिल तेरी फ़ुर्क़त में ऐ बुत-ए-दम-बाज़ हो के आँखों से ख़ूँ बहा है दिल मिल के उस से हुआ मिरा दुश्मन देख क्या सख़्त बेवफ़ा है दिल जब से आशिक़ हुआ हूँ उस का मैं रात-दिन सिर्फ़ मुद्दआ' है दिल उंसुर-ए-ख़ाक सर्द दिल ये गर्म कौन सी ख़ाक से बना है दिल ऐ मुहव्विस जो यार के दर पर ख़ाक होए तो कीमिया है दिल ग़म-ए-हिज्राँ में हो के क़तरा-ए-ख़ूँ नोक-ए-मिज़्गाँ पे आ रहा है दिल सीने में इक खटक सी है बस और हम नहीं जानते कि क्या है दिल याद में उस के तीर-ए-मिज़्गाँ के हदफ़-ए-नावक-ए-बला है दिल तुझ से कोई भला मिले क्यूँ कर तेरा हर हर्फ़ ख़ुद जुदा है दिल क़द्र-ए-दिल 'ऐश' कोई क्या जाने मख़्ज़न-ए-राज़-ए-किबरिया है दिल