मुक़ाबिल उस दुर-ए-दंदाँ के ये गुहर क्या है और 'ऐश' लाल की उस लब के आगे दर क्या है ख़याल-ए-यार में हो महव-ए-बे-ख़ुदी ऐसा मुझे ख़बर नहीं दिल क्या है और जिगर क्या है कहे है इश्क़ में नासेह कि है ज़रर दिल का जो वाक़ई है ज़रर ये है तो ज़रर क्या है किया है नूह के तूफ़ाँ को तू ने शर्मिंदा इरादा अब तिरा कह और चश्म-ए-तर क्या है मिला है जिस को हशम क़त-ए-मा-सिवा अल्लाह नज़र में उस की ये दुनिया का कर्र-ओ-फ़र क्या है तू मेरी आह से सीना-सिपर न हो ऐ चर्ख़ तुझे ख़बर नहीं इस आह में असर क्या है तू राह-ए-इश्क़ के सदमों से मत डरा वाइ'ज़ जो सरफ़रोश हैं इस रह में उन को डर क्या है हमारा चाक-ए-जिगर बख़िया-गर सिएगा चे ख़ुश ये चाक वो नहीं मक़्दूर-ए-बख़िया-गर क्या है ख़याल जिस को रुख़-ओ-ज़ुल्फ़-ए-यार का है बँधा वो जानता ही नहीं शाम और सहर क्या है है दिल को नाज़ तिरे जिस जहान-ए-फ़ानी पर बता वो और ब-जुज़ ख़ाना-ए-दो-दर क्या है तू किस घमंड पे मिस्ल-ए-शरर उछलता है ख़याल दिल में तो कर हस्ती-ए-शरर क्या है ख़ुदा ने खोला है ये राज़ जिन पे आलम में वो जानते हैं कि माहिय्यत-ए-बशर क्या है बुतों को सज्दा-ए-दर के सिवा बता ऐ 'ऐश' जहाँ में हम ने किया और उम्र भर क्या है