मुझ से शकेब-ए-क़ल्ब का सामाँ न हो सका उस पर भी दिल का राज़ नुमायाँ न हो सका ये दिल मिटा मिटा सा ये शो'ला बुझा बुझा एक आफ़्ताब से भी फ़रोज़ाँ न हो सका सुलझाए तेरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के बल मगर क़ाएम निज़ाम-ए-आलम-ए-इम्काँ न हो सका तुझ को तिरे शबाब को रंग-ए-बक़ा दिया अपनी ही ज़ीस्त का कोई सामाँ न हो सका छिड़की तिरे तबस्सुम पिन्हाँ की चाँदनी ख़ल्वत का रंग फिर भी दरख़्शाँ न हो सका बैठा रहा जो गेसू-ए-मुश्कीं के साए में वो पाएमाल गर्दिश-ए-दौराँ न हो सका आईना अक्स-ए-जल्वा से टूटा नहीं कभी दिल यूरिश-ए-जमाल से हैराँ न हो सका नश्शे में तेरे पाँव पे गिरता जबीं के बल 'मख़मूर' इतना कैफ़-ब-दामाँ न हो सका