मुझे एहसास ये पल पल रहा है कि मेरे सर से सूरज ढल रहा है ख़ुशा साथी वो पिछले मौसमों के ये तन्हाई का आलम खल रहा है बरा-ए-शब जलाओ मिशअल-ए-जाँ थका-माँदा ये सूरज ढल रहा है सफ़र में ये गुमाँ है हर क़दम पर कि मेरे साथ कोई चल रहा है रक़म थे जिस पे लम्हे बेश-क़ीमत वो काग़ज़ आँसुओं से गल रहा है तसव्वुर है नशा है धड़कनें हैं 'सुख़न' शे'रों में कोई ढल रहा है