मुझे अज़ीज़ बहुत था जो हम-सुख़न मेरा उसी ने फेंक दिया धरती पर गगन मेरा मैं ख़ुद को देख रहा हूँ बड़े तअज्जुब से पड़ा हुआ है मिरे सामने बदन मेरा उठा न पाया क़दम बावजूद-ए-कोशिश के मज़ाक़ उड़ाती रही रात-भर थकन मेरा क़रीब था कि मिरी रूह तक झुलस जाती क़रीब था कि कोई नोचता बदन मेरा डरे डरे हैं सभी फूल इस अंधेरे से हिसार-ए-शब में मुक़य्यद है ये चमन मेरा तिरी तलाश में जब जिस्म थक के गिरता है ख़याल रहता है फिर भी ये गामज़न मेरा पड़ा हुआ है मिरा जिस्म कब से मिट्टी पर चला गया है कहाँ जाने गोरकन मेरा तुम्हारे बा'द रहा हूँ मैं धूप छाँव में नबूद-ओ-बूद में जीना हुआ कठिन मेरा