मुझे बचा भी लिया छोड़ कर चला भी गया वो मेहरबाँ पस-ए-गर्द-ए-सफ़र चला भी गया वगर्ना तंग न थी इश्क़ पर ख़ुदा की ज़मीं कहा था उस ने तो मैं अपने घर चला भी गया कोई यक़ीं न करे मैं अगर किसी को बताऊँ वो उँगलियाँ थीं कि ज़ख़्म-ए-जिगर चला भी गया मिरे बदन से फिर आई गए दिनों की महक अगरचे मौसम-ए-बर्ग-ओ-समर चला भी गया हवा की तरह न देखी मिरी ख़िज़ाँ की बहार खिला के फूल मिरा ख़ुश-नज़र चला भी गया अजीब रौशनियाँ थीं विसाल के उस पार मैं उस के साथ रहा और उधर चला भी गया कल उस ने सैर कराई नए जहानों की तो रंज-ए-नारसी-ए-बाल-ओ-पर चला भी गया