नज़र को फिर कोई चेहरा दिखाया जा रहा है ये तुम ख़ुद हो कि मुझ को आज़माया जा रहा है बहुत आसूदगी से रोज़-ओ-शब कटने लगे हैं मुझे मालूम है मुझ को गँवाया जा रहा है सर-ए-मिज़्गाँ बगूले आ के वापस जा रहे हैं अजब तूफ़ान सीने से उठाया जा रहा है मिरा ग़म है अगर कुछ मुख़्तलिफ़ तो इस बिना पर मिरे ग़म को हँसी में क्यूँ उड़ाया जा रहा है बदन किस तौर शामिल था मिरे कार-ए-जुनूँ में मिरे धोके में उस को क्यूँ मिटाया जा रहा है वो दीवार-ए-अना जिस ने मुझे तन्हा किया था उसी दीवार को मुझ में गिराया जा रहा है मिरी ख़ुशियों में तेरी इस ख़ुशी को क्या कहूँ मैं चराग़-ए-आरज़ू तुझ को बुझाया जा रहा है ख़िरद की सादगी देखो कि ज़ाहिर हालतों से मिरी वहशत का अंदाज़ा लगाया जा रहा है अभी ऐ बाद-ए-वहशत इस तरफ़ का रुख़ न करना यहाँ मुझ को बिखरने से बचाया जा रहा है