मुझे ग़रज़ है मिरी जान ग़ुल मचाने से न तेरे आने से मतलब न तेरे जाने से अजीब है मिरी फ़ितरत कि आज ही मसलन मुझे सुकून मिला है तिरे न आने से इक इज्तिहाद का पहलू ज़रूर है तुझ में ख़ुशी हुई तिरे ना-वक़्त मुस्कुराने से ये मेरा जोश-ए-मोहब्बत फ़क़त इबारत है तुम्हारी चम्पई रानों को नोच खाने से मोहज़्ज़ब आदमी पतलून के बटन तो लगा कि इर्तिक़ा है इबारत बटन लगाने से