रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़ प्यारा है दिल तो नाज़ भी दिल के उठाए ज़ुल्फ़ दर-गुज़रे दिल की याद से हम जान तो बची पीछे पड़ी है जान के अब क्यूँ बुलाए ज़ुल्फ़ वो क्यूँ बताए हम को दिल-ए-गुम-शुदा का हाल पूछें जनाब-ए-ख़िज़्र तो रस्ता बताए ज़ुल्फ़ बिखराए बाल देख लिया किस को बाम पर हर वक़्त हाए ज़ुल्फ़ है हर लहज़ा हाए ज़ुल्फ़ किस तरह उन हसीनों के भरती रही है कान पहुँचे न तेरे कान में ऐ दिल सदा-ए-ज़ुल्फ़ बल खा के दोश-ए-नाज़ से गिरना इधर उधर वो ज़ुल्फ़ और हाए वो काफ़िर अदा-ए-ज़ुल्फ़ ले कर बलाएँ ख़ुद वो कशाकश में पड़ गया दिल ज़ुल्फ़ को सताए न दिल को सताए ज़ुल्फ़ फंदे में उस के ताइर-ए-दिल आ रहेगा आप मुर्ग़-ए-नज़र को दाम में पहले फँसाए ज़ुल्फ़ पैंगाए और ये जौबनों का रहनुमा-ए-दिल सद साला ज़ाहिदों को तो बरसों झुलाए ज़ुल्फ़ आशुफ़्तगान-ए-ज़ुल्फ़ का बरहम है क्यूँ मिज़ाज कहता है कौन कोई न हो मुब्तला-ए-ज़ुल्फ़ साए से उस के भागते हैं लोग दूर दूर बिगड़ी हुई है आज-कल ऐसी हवा-ए-ज़ुल्फ़ तुम नाम उन की ज़ुल्फ़ को रखते हो क्यूँ 'रियाज़' सुन ले तू एक एक की सौ सौ सुनाए ज़ुल्फ़