मुझे ख़्वाब-ए-सराब-ए-अज़ाब दिए मिरी रूह का नग़्मा छीन लिया आशोब-ए-मलाल इशरत-ए-जाँ 'विज्दान' से क्या क्या छीन लिया इक रंज-ए-सफ़र की धूल मिरे चेहरे पे गर्द-ए-मलाल हुई इक कैफ़ जो संगी साथी था उस कैफ़ का साया छीन लिया मिरे हाथ भी ज़ख़्म-ए-दिल की तरह मैं टूट गया साहिल की तरह ऐ दर्द-ए-ग़म-ए-हिज्राँ तू ने क्या मुझ को दिया क्या छीन लिया इन रंगों में मिरा रंग भी था इन बातों में मिरी बात भी थी मिरा रंग मिटा मिरी बात कटी किस ने मिरा रस्ता छीन लिया ऐ शहर-ए-अलम मिरी बात तो सुन तू ख़्वाब मिरे वापस कर दे मैं तेरा करम लौटा दूँगा तू ने मिरा चेहरा छीन लिया मैं नौहागरी तक भूल गया मिरे लोग जले मिरे शहर लुटे इस शहर-ए-मईशत ने मुझ से एहसास का दरिया छीन लिया ये सूद-ओ-ज़ियाँ की बातें हैं इन बातों में क्या रक्खा है इक ख़्वाब-ए-तमन्ना दे के मुझे इक ख़्वाब-ए-तमन्ना छीन लिया