मुझे कुछ भी नहीं हुआ ऐ दोस्त आदतन हूँ बुझा बुझा ऐ दोस्त मैं मिज़ाजन ख़मोश रहता हूँ मैं किसी से नहीं ख़फ़ा ऐ दोस्त दोष क़िस्मत को दे दिया मैं ने मुझ से जब कुछ न बन पड़ा ऐ दोस्त क्या मुझे वो अज़ीज़-अज़-जाँ है मैं ने जिस को गँवा दिया ऐ दोस्त ख़ुद-फ़रेबी में मुब्तला हूँ मैं कौन मुझ सा है बेवफ़ा ऐ दोस्त लौट जाऊँ मैं शहर-ए-ख़्वाब ऐ काश दश्त में दिल नहीं लगा ऐ दोस्त दोस्त अपना कोई नहीं 'काशिफ़' क्या किसी को पुकारना ऐ दोस्त