मैं ने इक़रार कर के चाहत का किया इज़हार अपनी वहशत का मुझ से नज़रें मिला न पाया वो यही अंदाज़ है मोहब्बत का बाज़ रक्खे न जो गुनाहों से कोई हासिल है इस मलामत का बाद मुद्दत के हम मिले हैं दोस्त यही मौक़ा है क्या शिकायत का सीना-ए-दाग़-दाग़ दीदा-ए-नम ये है अंजाम कार-ए-उल्फ़त का हाँ मोहब्बत किसी के बस में नहीं कुछ है 'काशिफ़' जवाज़ नफ़रत का