मुझे मिटाता रहा है ये आसमान बहुत मगर ज़मीं पे हैं अब भी मिरे निशान बहुत है लुत्फ़ कुछ तो है मेरे जदीद लहजे में क़दीम वर्ना है मेरी भी दास्तान बहुत तलाश हो भी तो क्या साया-ए-शजर की मुझे मिरे लिए है ये सूरज का साएबान बहुत अब आगे उन के दिलों में है क्या ख़ुदा जाने नज़र तो आते हैं ये लोग मेहरबान बहुत अजब नहीं कि मैं दरिया न पार कर पाऊँ शिकस्ता है मिरी कश्ती का बादबान बहुत बहाए प्यार ने चश्मे हज़ार-हा लेकिन है सख़्त अब भी तिरे दर्द की चटान बहुत पता नहीं ये मुझे आज-कल हुआ क्या है मैं अपनी ज़ात से 'ख़ावर' हूँ बद-गुमान बहुत