मुझे नक़्ल पर भी इतना अगर इख़्तियार होता कभी फ़ेल इम्तिहाँ में न मैं बार बार होता जो मैं फ़ेल हो गया तो सभी दे रहे हैं ता'ने कोई दिल-नवाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता मुझे आज इतनी नफ़रत से न देखती ये दुनिया जो पढ़ाई से ज़रा भी मिरे दिल को प्यार होता मिरे मास्टर न होते जो उलूम-ओ-फ़न में दाना कभी मौला-बख़्श-साहब का न मैं शिकार होता वो पढ़ाते वक़्त दर्जे में हज़ार बार बरसे जो मुझे भी छींक आती उन्हें नागवार होता न मैं तंदुरुस्त होता न कभी स्कूल जाता कभी सर में दर्द रहता तो कभी बुख़ार होता कभी मदरसे में आता कोई ऐसा चाट वाला कि जो मुफ़्त में खिलाता न कभी उधार होता ये गधा जो अपनी ग़फ़्लत से है बेवक़ूफ़ इतना जो ये ख़ुद को जान जाता बड़ा होशियार होता तिरे घर में 'कैफ़' तेरा कोई क़द्र-दाँ नहीं है जो वतन से दूर होता तो बड़ा वक़ार होता