मुझे रुतबा-ए-ग़म बताना पड़ेगा अगर मेरे पीछे ज़माना पड़ेगा बहुत ग़म-ज़दा दिल हैं कलियों के लेकिन उसूलन उन्हें मुस्कुराना पड़ेगा सुकूँ ढूँडने आए थे मय-कदे में यहाँ से कहीं और जाना पड़ेगा ख़बर क्या थी जश्न-ए-बहाराँ की ख़ातिर हमें आशियाना जलाना पड़ेगा बहार अब नए गुल खिलाने लगी है ख़िज़ाँ को चमन में बुलाना पड़ेगा सुकूत-ए-मुसलसल मुनासिब नहीं है असीरो तुम्हें ग़ुल मचाना पड़ेगा 'फ़ना' तुम हो शाएर तो अफ़्साना-ए-ग़म ग़ज़ल की ज़बानी सुनाना पड़ेगा