वो शख़्स फिर कहानी का उन्वान बन गया मैं दर्द लिख रही थी वो दीवान बन गया गर्दिश में चारों सम्त रहे उस के लफ़्ज़ लफ़्ज़ कुछ यूँ हुआ के आज वो मेहमान बन गया ख़ुश थी मैं उस को बख़्श के किरदार फिर नया वो मेरी दिल-लगी का भी सामान बन गया महफ़िल उरूज पर थी कि नज़रें उलझ पड़ीं सब जान-बूझ के भी वो अंजान बन गया जब उस का इश्क़ ख़ून की धारों में हल हुआ मेरे लिए तो लूलू-ओ-मर्जान बन गया इतने तग़य्युरात के अल्लाह की पनाह हर कर्ब मेरे इश्क़ का तावान बन गया लज़्ज़त तो आँख ने भी उठाई थी सारी रात इक ख़्वाब मेरी रूह का सोहान बन गया कुछ और रम्ज़ मुझ पे किए जाएँ आश्कार उस की तरफ़ से ये नया फ़रमान बन गया 'असरा' क़दम सँभाल के रखना ज़मीन पर शैतान कह रहा है कि रहमान बन गया