मुझे वो छोड़ कर जब से गया है इंतिहा है रग-ओ-पय में फ़ज़ा-ए-कर्बला है इंतिहा है मिरे हालात हैं नाराज़ इस पे क्या करूँ मैं गुरेज़ाँ आसमानों से दुआ है इंतिहा है ग़म ओ आलाम हैं या हसरतें हैं ज़िंदगी में तुम्हारे बाद बाक़ी क्या बचा है इंतिहा है फ़क़त तुम ही नहीं नाराज़ मुझ से जान-ए-जानाँ मिरे अंदर का इंसाँ तक ख़फ़ा है इंतिहा है कहीं मंज़र असालीब-ए-हवस के चार-सू हैं कहीं पे ख़ून-आलूदा फ़ज़ा है इंतिहा है ख़मोशी तोड़ दे ऐ ख़ालिक़-ए-अर्ज़-ओ-समा अब तिरी मख़्लूक़ बन बैठी ख़ुदा है इंतिहा है ग़ज़ल जो तुम पे 'ताहिर' ने लिखी थी जान-ए-'ताहिर' वही तो ज़ीनत-ए-बाम-ए-बक़ा है इंतिहा है