मुझे यक़ीं है कोई रास्ता तो निकलेगा अगर जो कुछ नहीं निकला ख़ुदा तो निकलेगा मैं रेग-ज़ारों में दरिया तलाश करता हूँ मिरी तलाश से इक सिलसिला तो निकलेगा किताब-ए-ज़ीस्त के पन्ने पलट रहा हूँ मैं किसी वरक़ से कोई फ़ल्सफ़ा तो निकलेगा दिए दिखाते रहो दिन में ऐसे सूरज को जो उस के दिल में अंधेरा हुआ तो निकलेगा ये सोच कर के चमन में लगा दी आग उस ने के इस में कोई परिंदा हुआ तो निकलेगा सदाएँ देना मिरा काम है करूँगा मैं कोई पहाड़ मिरा हम-नवा तो निकलेगा मैं सारे शहर को ख़्वाबीदा छोड़ कर निकला के आँख खुलने पे इक रहनुमा तो निकलेगा चलो भी 'शम्स' उठो जुगनूओं की महफ़िल से तुम्हारे बाद कोई मुद्दआ तो निकलेगा