दार-ओ-रसन पे हर कोई मंसूर तो नहीं झुलसे हुए पहाड़ सभी तूर तो नहीं ईसा-नफ़स है इश्क़ अगर ये बताइए कि है कभी सलीब से वो दूर तो नहीं हैं राहज़न ये साँसें मिरी क्या बताऊँ मैं फिर भी सफ़र हयात का मजबूर तो नहीं ये रौशनी क़सीदा है तेरे ज़ुहूर का आँखों से दिख सके वो तिरा नूर तो नहीं पत्थर गले में बाँध के दरिया में डूब जा ऐ 'शम्स' तेरा इश्क़ उसे मंज़ूर तो नहीं