मुझे ज़मीं से मोहब्बत थी जा के लौट आया फ़लक को इश्क़ की अज़्मत दिखा के लौट आया चराग़ क़ब्र-ए-वफ़ा पर जला के लौट आया मैं अपने दिल को ठिकाने लगा के लौट आया तो सह्न-ए-आसमाँ सब भर गया सितारों से मैं ख़ाक चाँद के मुँह पर उड़ा के लौट आया अमीर-ए-शहर मुझे ताज देने वाला था मैं नींव उस के महल की हिला के लूट आया वो एक तीर जो पूँजी थी उस की आँखों की उसे मैं अपने जिगर में धँसा के लौट आया बहार आए न आए मिरे गुलिस्ताँ तक मैं दश्त-ओ-सहरा में ग़ुंचे खिला के लौट आया मैं चाहता था वो जाए तो फिर नहीं आए मगर वो फिर नई बातें बना के लौट आया बहुत ग़ुरूर था उस को बुलंद होने पर मैं आसमान के सर को झुका के लौट आया सुबूत मेरी मोहब्बत का माँगने वालो लहू से दार-ओ-रसन को सजा के लौट आया हवा के पाँव बहुत लड़खड़ा रहे थे 'नदीम' बहकती शाम को लेमू चटा के लौट आया